आज फिर चाँद नभ में छा गया है आशिक को तेरा चेहरा भा गया है सूरज की तपन जला रही थी मुझे जाते,आसमां में लाली ला गया है साँझ की बेला बडी खूबसूरत है ये आलम मेरा चैन खा गया है फूल को देख भंवरा खिल उठा नज़ाकत से मानो पगला गया है कितना इंतज़ार रहा है मेहबूब का मौसम के आते सावन आ गया है ख़ुशी मिली है दुनियां में आ “उड़ता” जाने दिल ऐसा क्या पा गया है।